मामला संख्या: 2024 AHC 11990
तारीख: 31 जनवरी 2024
अदालत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय
पक्षकार:
- अपीलकर्ता (Petitioner): M/s Falguni Steels
- उत्तरदाता (Respondent): राज्य सरकार और अन्य
मामले की पृष्ठभूमि
M/s Falguni Steels, उत्तर प्रदेश की एक प्रतिष्ठित फर्म, लोहे और स्टील के उत्पादों का व्यापार करती है। जनवरी 2024 में, उन्होंने अपने एक ग्राहक को माल की डिलीवरी के लिए एक लॉरी में माल भेजा। सभी आवश्यक दस्तावेज, जैसे चालान, ई-वे बिल, और अन्य वैध कागजात माल के साथ थे।
हालांकि, माल की डिलीवरी के दौरान, ई-वे बिल की वैधता तकनीकी कारणों से समाप्त हो गई। जब परिवहन अधिकारियों ने वाहन की जांच की, तो उन्होंने पाया कि ई-वे बिल अब मान्य नहीं है। इस आधार पर, माल को जब्त कर लिया गया और 100% टैक्स और समान राशि का जुर्माना (Total Tax + Penalty = ₹20 लाख से अधिक) लगाया गया।
प्रमुख विवाद
मामला इस प्रश्न पर केंद्रित था कि क्या ई-वे बिल की वैधता समाप्त होने के कारण अधिकारियों को दंडात्मक कार्रवाई करने का अधिकार है, खासकर तब जब:
- कर चोरी का कोई इरादा नहीं दिखता।
- सभी वैध दस्तावेज पहले से उपलब्ध हैं।
अपीलकर्ता (M/s Falguni Steels) के तर्क
- प्रक्रियात्मक त्रुटि:
ई-वे बिल की वैधता समाप्त होना केवल एक तकनीकी गलती थी, क्योंकि माल का परिवहन वैध था। - कोई कर चोरी का इरादा नहीं:
अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि उनका कर चुकाने का कोई भी इरादा छुपाने का नहीं था। - सभी दस्तावेज उपलब्ध थे:
चालान, भुगतान प्रमाण, और माल का पूरा विवरण वाहन में मौजूद था। - अत्यधिक जुर्माना:
अधिकारियों ने ₹20 लाख से अधिक का दंड लगाया, जो असंगत और अनुचित था।
उत्तरदाता (राज्य सरकार) के तर्क
- ई-वे बिल की अनिवार्यता:
राज्य सरकार ने तर्क दिया कि ई-वे बिल की वैधता समाप्त होने के बाद माल का परिवहन जीएसटी अधिनियम का उल्लंघन है। - सख्त अनुपालन की आवश्यकता:
सरकार ने कहा कि ई-वे बिल के बिना माल का परिवहन कर चोरी के इरादे का संकेत हो सकता है।
न्यायालय का अवलोकन और निर्णय
न्यायालय ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार किया:
- कर चोरी का इरादा:
- न्यायालय ने पाया कि अपीलकर्ता ने सभी वैध दस्तावेज प्रस्तुत किए थे।
- ई-वे बिल की समाप्ति केवल प्रक्रियात्मक त्रुटि थी और कर चोरी का कोई ठोस सबूत नहीं था।
- प्रक्रियात्मक त्रुटियों के प्रति दृष्टिकोण:
- न्यायालय ने माना कि प्रक्रियात्मक त्रुटि के लिए भारी जुर्माना अनुचित है।
- न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में अधिकारियों को लचीला रुख अपनाना चाहिए।
- दंड की समाप्ति:
- न्यायालय ने ₹20 लाख के दंड को रद्द कर दिया।
- न्यायालय ने आदेश दिया कि माल को तुरंत छोड़ा जाए और अपीलकर्ता के व्यवसाय संचालन को बाधित न किया जाए।
न्यायालय की टिप्पणी
न्यायमूर्ति ने टिप्पणी की:
“जीएसटी प्रणाली को पारदर्शी और व्यापार-अनुकूल बनाने की आवश्यकता है। केवल प्रक्रियात्मक त्रुटियों के आधार पर व्यापारियों को सजा देना अनुचित है। कर चोरी साबित करने के लिए ठोस साक्ष्य की आवश्यकता होती है।”
इस निर्णय का महत्व
- व्यापारियों के लिए राहत:
यह निर्णय ई-वे बिल की वैधता से संबंधित मामलों में व्यापारियों के लिए राहत प्रदान करता है। - अधिकारियों के लिए मार्गदर्शन:
न्यायालय ने अधिकारियों को सलाह दी कि वे प्रक्रियात्मक त्रुटियों और वास्तविक कर चोरी में अंतर करें। - भविष्य के मामलों के लिए दृष्टांत:
यह निर्णय भविष्य में प्रक्रियात्मक त्रुटियों के आधार पर दंड लगाने के मामलों में कानूनी दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है।
यह मामला स्पष्ट रूप से दिखाता है कि कानून का उद्देश्य केवल अनुपालन सुनिश्चित करना है, न कि व्यापारियों को अत्यधिक दंड देना।